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रक्त के धब्बों को
इन कविताओं को पढ़ते हुए लगता है जैसे हम अपने दारुण समय की एक डॉक्यूमेंट्री देख रहे हों जिसमें कवि एक-एक दृश्य दर्ज़ कर रहा है। कविता की सच्चाई इस से भी जानी जाती है कि वह अनुभव के भीतर से उत्पन्न हुई हो। लंबे समय से कश्मीर घाटी के पुलवामा में निवास करते हुए निदा अपने अनुभवों के रक्त के बीच खड़े हुए अवाम की तरफ से आवाज़ उठाते हैं और समाज को क्षत-विक्षत करने वाली मनुष्य विरोधी ताकतों की शिनाख्त करते हैं । इसीलिए वे कश्मीर में सेना और उग्रवाद, दोनों को कठघरे में ले आते हैं। अनेक बार वे घटनाओं और लोगों पर सीधी, प्रत्यक्ष और रेटोरिक से भरी कविताएँ भी लिख देते हैं, भले ही कला के लिहाज से वे कुछ शर्तें पूरी न कर पाती हों। दरअसल, ज़्यादातर रचनाओं का कथ्य इतना ठोस, तीखा और मार्मिक है कि उनके शिल्प की ओर बाद में ध्यान जाता है ।
मुक्तिबोध ने अपनी प्रसिद्ध कविता 'ब्रह्मराक्षस' में 'पिस गया वह / भीतरी और बाहरी / दो कठिन पाटों
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