...

8 views

ओ दोगली स्त्री
हां सही सुना
मैंने तुमसे ही कहा
ये जो तुम रोना रोती रहती हो
अपनी बेबसी का
सदियों से सताई जा रही हूं
कब से दबाई जा रही हूं....
पर जरा ये तो बताओ
बहु को ताना देने बाली
सास क्या स्त्री नहीं
या सास को बेवजह तंग
करने बाली बहु स्त्री नहीं....
और तो और
लड़की पैदा होने पर
मातम मनाने बाली
सास और मां भी स्त्री नहीं...
हद तो तब है
जब सुनते हैं मां ने खुद ही
अपनी बच्ची को पेट में मार दिया
ये जानकर की ये लड़की है
कमाल का है ये दोगलापन
किसी स्त्री को आगे बढ़ता देख
स्त्री ही खुश नहीं होती
और रोना रोती है
जुल्मों का,,,

माना की सदियों से
ऐसा होता आया है
किसी न किसी रूप में
बस धोखा मिलता आया है...
पर क्या हम दिल पर हाथ रख
ये कह सकते हैं
हमारा इसमें कोई हाथ नहीं
हमारे दामन पर कोई दाग नहीं...
वो कहते हैं न
गैरों से मिलने वाले
ज़ख्म वक्त के साथ भर जाते हैं
अपनों के तो उम्र भर
न मिटने बाला दर्द दे जाते हैं

छोड़ ये दोगलापन
क्यों न हम ये विचार करें
ज़ुल्म अगर किसी स्त्री पर हो
तो हम उसकी तलवार बनें
बेटी - बहन - बहु - सास- मां
हर रूप में बस मददगार बनें
किसी भी तरह हम
उसके कष्टों का न भागीदार बनें।














© बूंदें