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निज संस्कृति
. "नारी सशक्तिकरण"


नारी तो श्रद्धा है सावित्री है सती है ,
जौहर - व्रत में कभी नहीं हिचकी है
दुर्गा रूप धारिणी, महिषासुर मर्दनी,
समस्त सृष्टि की पालक पोषक धरा ।
नित प्रति मानव रूपी दानव की संहर्ता
नव कोपल के प्रस्फुटन पूर्व ही ,
वंश वल्लरी को बढाने वाली'
समूल नष्ट कर दी जाने वाली ।
धिक्कार है का पुरुष ! क्या -
क्या नारी के संभव बिना ही
संभव है प्रकृति का संचालन ?
विधि की प्रकृति ही , है स्त्रीलिंग
पौरुष से अपने क्या ,
कर सकता है पुल्लिग?
यदि "नही "है तुम्हारा उत्तर ।
तो लिंग भेद मत कर,
मत कर ! मत कर ! मत कर !

निवेदिता अस्थाना "किरण"
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०७/०७/२०२१ ।