...

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उलझन
अगर मैं हो भी गयी तुम्हारी,
तो तुमको मेरी कदर ना होगी,
मैं होतीं रहूंगी ज़ार‐ज़ार और
तुमको मेरी ज़रा फिक्र ना होगी,
क्यूँ रस्ता रोके खड़े हो मेरा,
मैं टूटती रहूँगी मग़र
कुछ कह ना पाऊँगी,
और तुम दिल से दूर होगे इतना मेरे कि मेरे टूटने की आवाज तुम तक पहुंच ना पाएगी.
फ़ैसला नहीं छोड़ती अब
टूटे दिल कन्धों पर, ना बोझ दर्द का डालती हूँ,
कभी कहानियां सुनाती थी आजकल पहेलियाँ बुझती हूँ।
© sneha;)