दूर
#दूर
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
हृदय की कूंठा से स्वयं लड़ रहा कोई,
प्रेम विरह में वेदना के गीत अलाप रहा कोई,
उधार के चंद लम्हे जी रहा कोई।
© पूर्णिमा मंडल अनकहे एहसास
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
हृदय की कूंठा से स्वयं लड़ रहा कोई,
प्रेम विरह में वेदना के गीत अलाप रहा कोई,
उधार के चंद लम्हे जी रहा कोई।
© पूर्णिमा मंडल अनकहे एहसास