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yaad
जितना दूर जाते हो,
उतना पास बुलाती है,
जब भी याद तुम्हारी आती है।
वो सूरज के ढलने पर, या चाँद के चलने पर,
जब कभी तन्हा मैं रहूँ,
ख्याल तुम्हारा साथ लाती है,
जब भी याद तुम्हारी आती है।
बीते वो लम्हे जो गुजरे थे साथ,
आज तक अहसाह उनका करवाती है,
जब भी याद तुम्हारी आती है।
ढलती शाम में जब भी तन्हा मैं रहूँ,
एक हल्की सी मुस्कान चेहरे पर लाती है,
जब भी याद तुम्हारी आती है।
उतना पास बुलाती है,
जब भी याद तुम्हारी आती है।
वो सूरज के ढलने पर, या चाँद के चलने पर,
जब कभी तन्हा मैं रहूँ,
ख्याल तुम्हारा साथ लाती है,
जब भी याद तुम्हारी आती है।
बीते वो लम्हे जो गुजरे थे साथ,
आज तक अहसाह उनका करवाती है,
जब भी याद तुम्हारी आती है।
ढलती शाम में जब भी तन्हा मैं रहूँ,
एक हल्की सी मुस्कान चेहरे पर लाती है,
जब भी याद तुम्हारी आती है।
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