...

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मैं
मैं कभी बादलों से बरसती हुई बारिश की तरह
तो कभी कीसक चुल्हे की आग हुं ,

कभी छोटे बच्चे की किलकारियां की तरह चारों तरफ गूंजती हुं
तो कभी बुजुर्ग इन्सान की शब्द बन जाता हूं,

कभी हवा से भी ज्यादा ‌चलने लगती हुं
तो कभी एक स्थिर जल की तरह सातं हूं,

कभी किसकी साथ देने के लिए खुद को खो देती हुं
तो कभी सही राह पर चलने के लिए खुद की सारी इच्छाएओं पर रोक लगा देती हूं,

हमेशा से खुद को सब के लिए बनाना चाहती थी
पर आज खूद के लिए खुद के साथ खड़ा होना चाहती हुं.......