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"पथिक" लगातार चल रहा है।
देखो आज फिर से सूरज,
ज़मी को रोशन कर रहा है।
अपनी मंजिल को पाने के लिए,
पथिक लगातार चल रहा है।
ये तो उसे भी मालूम नहीं ,
कि जाना कहां है मुझे ...
पर वो अपने सपनो की खातिर,
अपनी नींद को मसल रहा है।
अंधेरे से न उजाले से डर रहा है,
बस खुद ही खुद में मचल रहा है
अपनी मंजिल को पाने के लिए,
पथिक लगातार चल रहा है।
© "अभिलाषा"खरे"
ज़मी को रोशन कर रहा है।
अपनी मंजिल को पाने के लिए,
पथिक लगातार चल रहा है।
ये तो उसे भी मालूम नहीं ,
कि जाना कहां है मुझे ...
पर वो अपने सपनो की खातिर,
अपनी नींद को मसल रहा है।
अंधेरे से न उजाले से डर रहा है,
बस खुद ही खुद में मचल रहा है
अपनी मंजिल को पाने के लिए,
पथिक लगातार चल रहा है।
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