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सूरत–ए–हाल
वक्त—बेवक्त की कुछ बात बताता हूं,
आओ तुम्हें देश की सूरत–ए–हाल दिखाता हूं।
ना जाने ये कौनसी बला आई है,
जिसका न तो कुछ इलाज, ना ही कोई दवाई है।
तमाम जहां के रेडियो, टी.वी., अखबारों और लोगों के दिलो दिमाग में दौड़ती है..,
ये जिसकी हो जाए उसकी जिंदगी को मौत के मुंह से जोड़ती है।

यूं इसके कारनामे तुम्हे चंद अल्फाजों में बताता हूं,
आओ तुम्हें देश की सूरत–ए–हाल दिखाता हूं।
ना इसका कोई अपना, ना कोई सगा संबंधी...,
चारो और बेरोजगारी और देश में है धमाकेदार मंदी।
ये लाखो करोड़ों को उनके परिवार से जुदा कर गई...,
देश के छात्रों की शिक्षा को भी तबाह कर गई।

अब इस घड़ी के कुछ किस्सा–ए–वारदात बताता हूं,
आओ तुम्हें देश की सूरत–ए–हाल दिखाता हूं।
कितनो ने फरिश्तों की तरह अपना फर्ज़ निभाया है...,
वहीं कुछ लोगों ने इसे भी धर्म,राजनीति का मुद्दा बनाया है।
वो (कोरोना) देश के स्कूल कॉलेजों में अभी पढ़ाई कर रहा है..,
वो ना शराबों की दुकान पर, और चुनावी रैलियों में जाने से भी इंकार (मना) कर रहा है।

इस तंग हाल में भी खुश और स्वस्थ रहने के कुछ तरीके बताता हूं,
आओ तुम्हें देश की सूरत–ए–हाल दिखाता हूं।
बंद देश में अपने घर–परिवार के साथ हर हालत में खुश रहना है...,
और घर पर रहकर भी रचनात्मक कार्य करते रहना है।
सावधानी बरतनी है, गरीबों/परेशानो की मदद (सहायता) करते रहना है...,
अफवाहों से बचकर, अपनी साफ़–सफाई पर खूब ध्यान देना है।

आप सबसे स्वस्थ होने की आशा जताता हूं...,
आओ तुम्हें देश की सूरत हाल दिखाता हूं।
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