बस की बात नहीं
वक़्त-बेवक़्त यूँ आना जाना
मुद्दतों तक फिर नज़रें चुराना
ये प्रेम है मौसमी बरसात नहीं।
तन्हाईयों में टूट ही जाना और
महफ़िलों में अकेला हो जाना
कुछ न भाये जब तुम साथ नहीं।
अपनी पनाह में क़ामयाबी रखते
क़दमों पर यक़ीन बेहिसाब करते...
मुद्दतों तक फिर नज़रें चुराना
ये प्रेम है मौसमी बरसात नहीं।
तन्हाईयों में टूट ही जाना और
महफ़िलों में अकेला हो जाना
कुछ न भाये जब तुम साथ नहीं।
अपनी पनाह में क़ामयाबी रखते
क़दमों पर यक़ीन बेहिसाब करते...