...

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बस की बात नहीं
वक़्त-बेवक़्त यूँ आना जाना
मुद्दतों तक फिर नज़रें चुराना
ये प्रेम है मौसमी बरसात नहीं।

तन्हाईयों में टूट ही जाना और
महफ़िलों में अकेला हो जाना
कुछ न भाये जब तुम साथ नहीं।

अपनी पनाह में क़ामयाबी रखते
क़दमों पर यक़ीन बेहिसाब करते
कभी ज्योतिष को देते हाथ नहीं।

कभी दूसरों से भी घुल-मिल जायें
ग़म सुन कर आँखों के आँसू आये
सब हैं अपने परायो वाली बात नहीं।

परेशाँ है तेरी ख़ामोश ज़ुबाँ देखकर
मुद्दतों देखा नहीं तूने उसे मुस्कुराकर
उन बेचैनियों का तुझे एहसास नहीं!

आहटें, इंतज़ार, उदासियाँ,घबराहटें
यही है दिल के रिश्तों की अहमियत
थोड़ी सी परवाह और कुछ ख़ास नहीं।
--Nivedita