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दो राही
एक राही ढूंढता आया किसी को
जिसका वो रफ्ता रफ्ता हो गया
एक को मंजिल से मोहब्बत हो गई थी
और दूसरा पहले की मोहब्बत में खो गया
कुछ कहने लगा वो, कुछ जिक्र किया
इश्क प्रेम और मोहब्बत का नाम बेफिक्र लिया
कुछ छुपाया उसने कुछ बताया भी
तैरता भी रहा समंदर में और डुबाया भी
मंजिल से ज्यादा दूर कोई और हो गया था
क्यूं इतना वो मजबूर हो गया था
खुदा जाने कि राह भटक गया था
या उसकी मंजिल कोई और हो गया था
एक मुसाफिर की निगाहें समंदर ढूंढने निकली
और दूसरे की निगाहें ही उसका समंदर हो गया
© krish_is_not_a_poet
जिसका वो रफ्ता रफ्ता हो गया
एक को मंजिल से मोहब्बत हो गई थी
और दूसरा पहले की मोहब्बत में खो गया
कुछ कहने लगा वो, कुछ जिक्र किया
इश्क प्रेम और मोहब्बत का नाम बेफिक्र लिया
कुछ छुपाया उसने कुछ बताया भी
तैरता भी रहा समंदर में और डुबाया भी
मंजिल से ज्यादा दूर कोई और हो गया था
क्यूं इतना वो मजबूर हो गया था
खुदा जाने कि राह भटक गया था
या उसकी मंजिल कोई और हो गया था
एक मुसाफिर की निगाहें समंदर ढूंढने निकली
और दूसरे की निगाहें ही उसका समंदर हो गया
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