...

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मिलना अब श्रीराम कठिन है...
नफ़रत के इस दीर्घ दौर में,
अपनों की पहचान कठिन है।

हर मोड़ पर रावण बैठा है,
मिलना अब श्रीराम कठिन है।।

सह ना सकी नफ़रत की धूप,
फिर प्रेम की गंगा सूख गई।

वंशघाती बन बैठा भगीरथ,
सगर पुत्र उत्थान कठिन है।।

यमराज से स्वयं सावित्री,
सिंदूर का सौदा कर बैठी।

कलयुग के मृत सत्यवान को,
मिलना जीवनदान कठिन है।।

हर वाद यहाँ विवाद बना है,
तुक्कड़ भी कविराज बना है।

सच की लिखना छोड़ छगन,
मिलना अब सम्मान कठिन है।।

© छगन सिंह