...

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कहाँ जिस्मों में मिलता है
अब कहाँ वो जिस्मों में मिलता है
अब तो वो कूँचे बाज़ारों में बिकता है
कहीं मोलभाव से मिल जाये
तो कहीं किसी आलीशान
दूकान में सज़ा मिलता है
ये जो दिल है
अब कहाँ वो जिस्मों में मिलता है।...

अब तो रंग भी कहाँ अपना
पुताई के रंग से रचाया मिलता है
मेल की परतों सा काला है
लाल तो ऊपर से सजाया मिलता है
ये जो दिल है
अब कहाँ जिस्मों में मिलता हैं।...

छोटे छोटे टुकड़ों सा बंटा
अब बड़ा कहाँ मिलता है
अपनी कीमत के चक्कर में
हर बार छलता है
ये जो दिल है
अब कहाँ जिस्मों में मिलता है।...

--मनीषा राजलवाल



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