Mai kyo badi ho gayi?
हर तरफ नकाब हैफरेब का,किसी बेपर्दा शख्स का इंतजार करती हूं
थक चुकी हूं हर किसी पर शक कर कर के,अब मिन्नत बेशक नज़्म की करती हूं
क्या कहूं? कब कहूं? कैसे कहूं?
ये सब अब सोचना पड़ता है
मैं क्यों बड़ी हो गई, बस...
थक चुकी हूं हर किसी पर शक कर कर के,अब मिन्नत बेशक नज़्म की करती हूं
क्या कहूं? कब कहूं? कैसे कहूं?
ये सब अब सोचना पड़ता है
मैं क्यों बड़ी हो गई, बस...