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सुनी सुनाई
यह कविता सुनी सुनाई है,
क्या फिर सुनने में बुराई है,ये है कई रसों से भरी हुई,
कई भावों से पटी हुई,
जो पंक्ति ये दोहराई है क्या फिर सुनने में बुराई है,
जो सुनना यदि कठिन होगा तो इतिहास अवश्य भ्रमित होगा,
तब मन देखेगा,पूछेगा मौन देखें अब साथ तेरा देता है कौन,
तुम बिन कविता जी पाओगे या घट घट धक्के खाओगे,
समय में जो है लिखा वो तो अटल होगा पर ध्यान रख मन तेरा हर क्षण चंचल होगा,
तब विकसित और सबल होगा तब
विनाश तेरा तेरे ही पदतल होगा,
विनाश देख तू रोएगा पल पल तू आपा खोएगा,
जो किया उसी को धोएगा
तो जाग अभी समय खड़ा यहीं कविता में राग सुनता है क्या सही क्या गलत बताता है,
तू ध्यान लगा और साध यहीं में को संयम से बांध वहीं जहां नीति और ज्ञान खड़े,
सुन मन की निश्छल कविता का राग ये सुनी सुनाई करता है बात
क्या फिर सुनने में बुराई है,ये है कई रसों से भरी हुई,
कई भावों से पटी हुई,
जो पंक्ति ये दोहराई है क्या फिर सुनने में बुराई है,
जो सुनना यदि कठिन होगा तो इतिहास अवश्य भ्रमित होगा,
तब मन देखेगा,पूछेगा मौन देखें अब साथ तेरा देता है कौन,
तुम बिन कविता जी पाओगे या घट घट धक्के खाओगे,
समय में जो है लिखा वो तो अटल होगा पर ध्यान रख मन तेरा हर क्षण चंचल होगा,
तब विकसित और सबल होगा तब
विनाश तेरा तेरे ही पदतल होगा,
विनाश देख तू रोएगा पल पल तू आपा खोएगा,
जो किया उसी को धोएगा
तो जाग अभी समय खड़ा यहीं कविता में राग सुनता है क्या सही क्या गलत बताता है,
तू ध्यान लगा और साध यहीं में को संयम से बांध वहीं जहां नीति और ज्ञान खड़े,
सुन मन की निश्छल कविता का राग ये सुनी सुनाई करता है बात
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