सिसकता - शैशव
भारी बस्ते के बोझ ने है ,
शैशव छीन लिया । --- 2
पाश्चात्य सभ्यता की आंधी में
बचपन खो गया ।
भारी बस्ते -- - - -- - - - - - भूल गया वह आम के झूले,
और श्यामा का रंभाना
याद नहीं दादी की लोरी,
माँ का गीत सुनाना ॥
दुआ प्रणाम को छोड़ किनारे
आहा! बन गया हाय ।
कुशल क्षे म है नही किसी की ,
करते गुड - डे गुड बाय ॥
स्पर्धा की भागम भाग में,
है सब समय निकल गया ।
भारी बस्ते - - : - - - - . - - - -
आओ संकल्प करें हम सब
निज संस्कृति का मान करेंगे ।
अपने घर की परंपराओ का , . . हम सम्मान सदा करेंगे ॥
अंधानुकरण पाश्चात्य सभ्यता का
हम नहीं कभी करेंगे ।
आधुनिकता की होड़ में है
सब समय फिसल गया ।
भारी बस्ते के बोझ ने है
शैशव छीन लिया ।
पाश्चात्य सभ्यता की आंधी में
है बचपन खो गया ।
बाल - दिवस की हार्दिक शुभ कामनायें |🌹💐🎉
निवेदिता अस्थाना "किरण"
दिनाङ्क - २ ७ जुलाई २० २१.
नई कविता