...

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परिवर्तन
मैं खामोख्वाह बड़ी हो गई,समझदारों के साथ खड़ी हो गई ।
मैं नासमझ ही अच्छी थी,जब मैं छोटी बच्ची थी।
दिल की पककी मगर,अक्ल की कच्ची  थी।
जीवन में उल्लास था,बातों में मिठास थी ।
दोस्तों का पल भर का साथ,था सारे गमों का इलाज
खेलकूद से था बहुत प्यार,पर मुझे था बड़े होने का इंतजार

लेकिन अब बचपन खो गया,देखते ही देखते परिवर्तन हो गया
पूरी किताब पढ़ने की होड़ में,जीवन का पहला पृष्ठ पलट दिया।...