...

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नाशाद
खुद को और बरबाद करना चाहता हुँ
संगदिल मै तुझको याद करना चाहता हुँ....

अब के नफ़रत थोडी और बढा दो तुम
दिल को मै जरा नाशाद करना चाहता हुँ....

कैद है जो तुम्हारी कसमों की कफ़स मे
मिरे लफ़्जो को मै आजा़द करना चाहता हुँ....

हिफाज़त करना मेरे रकिब की मेरे रब्बा
मै तुझ से इक फरीयाद करना चाहता हुँ....

किसी टुटे हुए दिलसे मशवरा कर "संदीप"
दर्द-ए-दिलकी दवा ईजा़द करना चाहता हुँ
© संदीप देशमुख