मित्र-संग की यही तो बात...!
करा रहा उस मीठे अहसास का शब्दों से रास...
होता है मुझे जो-जो आभास...
लम्हे चंद होता है जब तुझ संग वास ।।
उस मीठी-प्यारी दास्तां की चलो करता हूं शुरूआत...
आता जब मै तेरे पास…
होता बड़ा मित्रवत एहसास ।।
होते रोम मेरे पुनः से पुलकित…
आती जब तू मेरे संहित ।।
उम्मीद की दुर्लभ किरण है जगती…
जैसे ही तू मुझे “कैसे हो?” कहती॥
हो जाता खुशी से पुनः रुबरू...
मित्रता की ऐसी पराकाष्ठा है तू ।।
बातें तेरी ऐसी होती...
हृदय में प्रेरणा स्फुरित हैं करती ।।
हो जाता साथ का शीतल...
होता है मुझे जो-जो आभास...
लम्हे चंद होता है जब तुझ संग वास ।।
उस मीठी-प्यारी दास्तां की चलो करता हूं शुरूआत...
आता जब मै तेरे पास…
होता बड़ा मित्रवत एहसास ।।
होते रोम मेरे पुनः से पुलकित…
आती जब तू मेरे संहित ।।
उम्मीद की दुर्लभ किरण है जगती…
जैसे ही तू मुझे “कैसे हो?” कहती॥
हो जाता खुशी से पुनः रुबरू...
मित्रता की ऐसी पराकाष्ठा है तू ।।
बातें तेरी ऐसी होती...
हृदय में प्रेरणा स्फुरित हैं करती ।।
हो जाता साथ का शीतल...