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कविता लेखन के सिलसिले में मेरी उलझने इतनी सारी है कि........
कविता लेखन के सिलसिले में!!!!!
मेरी उलझने इतनी सारी है कि खुद की सोच खुद पर ही भारी है
और दिमाग में विचारों की अलग से मारामारी है
खयालों की सीडीं भी दिन भर बढ़ती ही जा रही है
शब्दों के चुनाव में मेरा बार-बार जासूस वाली नजरों से ताक झाक करना भी तो बेहद जरूरी है
इस बीच हो रही कविता प्रतियोगिताओं में अपनी हिस्सेदारी देनी भी तो मेरी एक अपनी जिम्मेदारी है
खुशी, गम, नाराजगी जैसे अनेक रसीले भावो के बिना तो
आजकल हर कविता मानो जैसे एकदम अधूरी है
क्योंकि कविता में जान डालना केवल इस रस की ही अपनी एक कलाकारी है
लेकिन ना जाने मगर कुछ ना कुछ कमी है जो हर बार मेरी कविता को फीकी बना दे रही है
पर कोशिशों के इस सफर में मेरी यात्रा अभी भी जारी है
शायद जज्बातों को समझाने में मुझे थोड़ी मुश्किल आ रही है
इसीलिए मेरी कविता औरो तक पहुंचने में इतनी देर लगा रही है
वैसे भी कामयाबी के रास्ते पर चलने वालों से तो पूरी दुनिया हमेशा ही किसी न किसी मोड़ पर परीक्षा लेती ही रहती है
तरकीबो के बांध से ही तो मैंने अपनी बाकी सारी रचनाएं सवारी है
और अब आगे भी इसी तरह ही अपनी सूझबूझ से मुझे अपनी लेखनयात्रा भी कायम रखनी है
मानती हूं कि दुनिया में काफी लेखक है जो मुझसे कई ज्यादा प्रतिभाशाली है
लेकिन मुझे तो अपने अंदर की छुपी हुई प्रतिभा को ही निखार कर सबके सामने लानी है
मेरी इस कविता की जो झलक आप सब को यहां दिख रही है वो मेरी अपने ही कविता लेखन की एक परेशानी है
जिसे मुझे हर हाल में जड़ से मिटानी है
ये सब बातें मेरे लिए कोई दुख की बात थोड़ी न है बल्कि यह तो मेरी खुद से हो रही ही एक जंग की निशानी है
और यह कविता तो दुनिया के हर लेखक के जीवन के शुरुआती दौर में घटने वाली एक आम कहानी है
जिसे दी मैंने बस अपनी जुबानी है।