...

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सुबह का पढ़ा दोपहर तक भूल जाना.....
सुबह का पढ़ा
दोपहर तक भूल जाना
रात होते होते
दिमाग से सब उड़ हो जाना
क्या मैं अकेली
जिसके साथ ऐसा होता
या और भी हैं
जिनका खुला है ऐसा खाता?

हद तो तब हो जाती है
जब परीक्षा के समय
आता हुआ भी सब है भूल जाना
और वहीं बैठे बैठे
अपने ख्यालों में ही डूब जाना
क्या मैं अकेली
जिसके साथ ऐसा होता
या और भी हैं
जिनका खुला है ऐसा खाता?

और उससे भी ज्यादा हद तो तब हो जाती
जब देर से आने वालों का
पेपर सबसे पहले हो जाना
घंटे भर पहले ही
उनका क्लासरूम से बाहर निकल जाना
देख के उनको
मेरे इस नन्हें से दिल का जल भुन जाना
और सोच सोच के
दिमाग का घूम जाना
कि कौन सी चक्की का
वो खातें है खाना
क्या मैं अकेली
जिसके साथ ऐसा होता
या और भी हैं
जिनका खुला है ऐसा खाता?

© Sankranti chauhan