पिजरें का पंछी
कुछ सपने देखे थे मैनैं, पर उन्हें पूरा करूं कैसे।
मैं तो पिजरें का पछीं हूँ, फिर खुले आसमान में उडूँ कैसे ।
उड़ते पछीं देख कर मन मेरा भी लहराता हैं,
पर फिर ये सोच कर थम जाता हैं,कि मुझको तो उड़ ना ही ना आता हैं।
देखादेखी जो मैं उडूं और गिर जाऊ, तो मुझको कौन उठायेगा।
माँ-बाप को छोड़ कर, क्या कोई और ये कर पायेगा??
इसलिए सपना अधूरा है, अब तो बस इन पिजरों बसेरा हैं।
मैं तो पिजरें का पछीं हूँ, फिर खुले आसमान में उडूँ कैसे ।
उड़ते पछीं देख कर मन मेरा भी लहराता हैं,
पर फिर ये सोच कर थम जाता हैं,कि मुझको तो उड़ ना ही ना आता हैं।
देखादेखी जो मैं उडूं और गिर जाऊ, तो मुझको कौन उठायेगा।
माँ-बाप को छोड़ कर, क्या कोई और ये कर पायेगा??
इसलिए सपना अधूरा है, अब तो बस इन पिजरों बसेरा हैं।