मैं शांत सा उड़न खटोला
#विश्व_कविता_दिवस
मैं शांत सा उड़नखटोला ,
हवाओं में बह रहा ।
हाथ मेरे पंख समान ,
मैं परियों के साथ उड़ रहा।
बहती हवाई मुझे रोकना चाहे ,
पर जिद है आगे बढ़ने की ।
चील जैसा परिंदा हूं मैं ,
है दृढता ऊपर उठने की।
यह बहती बयारे
बहुत कुछ बता रही ।
जीने का कला सिखाती हैं ,
इसलिए तो यह बारे
इतना मुझे भाती हैं।
मौलिकता का उपदेश देती,
आओ कुछ ज्ञान तुमसे बाटुँ मै।
दृढ़ संकल्प और कर्मठ जीवन,
मेरा यही सार ,
सच्चा बताऊं मैं।
© श्रीहरि
मैं शांत सा उड़नखटोला ,
हवाओं में बह रहा ।
हाथ मेरे पंख समान ,
मैं परियों के साथ उड़ रहा।
बहती हवाई मुझे रोकना चाहे ,
पर जिद है आगे बढ़ने की ।
चील जैसा परिंदा हूं मैं ,
है दृढता ऊपर उठने की।
यह बहती बयारे
बहुत कुछ बता रही ।
जीने का कला सिखाती हैं ,
इसलिए तो यह बारे
इतना मुझे भाती हैं।
मौलिकता का उपदेश देती,
आओ कुछ ज्ञान तुमसे बाटुँ मै।
दृढ़ संकल्प और कर्मठ जीवन,
मेरा यही सार ,
सच्चा बताऊं मैं।
© श्रीहरि