...

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कर्ण
उंचे उंचे लोगो मे मै ठहरा छोटी जात का,

खुद से ही अनजान मै ना घर का ना घाट का,

सोने सा था तन मेरा अभेद्य मेरा अंग था,

कर्ण का कुंडल चमका लाल नीले रंग का,

इतिहास साक्ष्य है योध्दा मै निपुण था,

बस एक मजबूरी थी मै वचनो का शौकीन था,

अगर ना दिया होता वचन कुंती माता को,

तो मै पांडवो के खून से धोता अपने हाथो को।