ग़ज़ल
जब भी तन्हा हुआ हूं रातों में,
ख़ुद को पाया हूं तेरी यादों में।
चाह मंज़िल की अब मैं क्या करता,
कट गई ज़िन्दगी जो राहों में।
अब रहा वास्ता नहीं उससे,
फिर क्यों आता है मेरे...
ख़ुद को पाया हूं तेरी यादों में।
चाह मंज़िल की अब मैं क्या करता,
कट गई ज़िन्दगी जो राहों में।
अब रहा वास्ता नहीं उससे,
फिर क्यों आता है मेरे...