...

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सिखा हैं।
कितनी बार ही मैंने देखा हैं
खुद को बदलते हुए, हालातों से लड़ते हुए।
कभी रो कर, कभी मुस्कुरा कर,
मगर चलती ही रही हूं मैं, रुकी नहीं।

कभी ढलते शाम की तरह उदास, कभी उगते सूर्य की तरह रोशन, मन का मकान हुआ,
उम्मीद का दिया जलाया और अंधेरे को मिटाया।
इस तरह से मैंने हर हाल में हिम्मत जुटाया।

हां,जिंदगी ने मुझे
आगे बढ़ते रहने का हुनर है सिखाया।