...

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धूल सी यादे
पुराना कुछ भूलने के लिए,
रोज़ कुछ नया, लिखना पड़ता है,

नज़र ना आए जाए बेचैनियां किसी को,
इसलिए कल से थोड़ा बेहतर, दिखना पड़ता है,

गलती से भी किसी को तकलीफ ना दें दे,
इसलिए कभी कभी बेवजह, झुकना पड़ता है,

दिल का बोझ जुबां पे ना आ जाए,
इसलिए रोज़ थोड़ा थोड़ा, घुटना पड़ता है,

जो सपने चाह कर भी हासिल ना हो सके,
उनकी याद में रोज़ थोड़ा थोड़ा, मिटना पड़ता है,

ये तन्हाईयां कहीं पसंद ना आने लगे,
इसलिए महफ़िल में जरूरत से ज्यादा, टिकना पड़ता है।
© amy_s