...

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ज़िंदगी की कश्मकश
ज़िंदगी की कश्मकश बस यूं ही जारी रही
तू किसी की हो कर भी तू बस हमारी रही

सोचा था कभी तुझे अपना बना ही लेंगे
वक़्त गुजरता गया दिल में एक जंग तारी रही

तेरा कुसूर कुछ भी तो नहीं था जुदा होने में
आज समझ आया कि ग़लती हमारी सारी रही

तेरी बातों को कभी गहराई से सोच ही न सके
हमारे दिल ओ ज़हन पर भारी मेरी खुद्दारी रही

मुसलसल उसकी तस्वीर चश्म-ए-तर में थी "हिना"
रात भर सोया भी रहा और शब भर खुमारी रही
© Hina