...

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क्या हुं मैं
सोचती हूं आज, क्या हूं मैं
कोई ख्वाब,पहेली या
ख़ुदा की आजमाईश हूं मैं

कभी रोने को जी चाहे तो
कभी हर बात पे मुस्कुरा दूं मैं
टूटे कांच की खनक सी नहीं
पर कतरा कतरा बिखरी हूं मैं
शायद किसी टूटे पैमाने की
टूटी हुई पैमाईश हूं मैं

कभी पल पल जीना चाहूं,
कभी हर पल को भुला दूं मैं
छोड़कर खुशियों का दामन,
कभी गम को गले लगा लूं मैं
शायद किसी अधूरी सी ज़िंदगी की
अधूरी ख्वाहिश हूं मैं

कोई हकीकत, कोई कहानी या
फिर पुरानी कोई दास्तां हूं मैं
सोचती हूं आज, क्या हूं मैं।