...

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एक कहानी- ग़ज़ल
सुनो मेरी ज़ुबानी इक कहानी
ग़मों का सैल बरसा आसमानी

गुज़रती उम्र की देखो रवानी
नहीं ठहरी किसी की भी जवानी

अभी दिन मौज के हैं मौज करलो
नहीं आसान है फिर ज़िंदगानी

मुहब्बत जिस्म से अच्छी नहीं है
अमर है रूह और है जिस्म फ़ानी

ज़रूरत क्या ही है डरने की तुमको
ख़ुदा जब कर रहा हो पासबानी

नए हैं लोग बेशक़ इस "सफ़र" में
मगर मंज़िल अभी भी है पुरानी
© -प्रेरित 'सफ़र'