पात्र
हम उस
#पात्र को भरने की कोशिश करते है जो है ही नही,
जो रोज़ अपना आकार बदल रहा है क्या वो कभी भरा भी जा सकता है?
मन में कचौड़ी खाने की इच्छा उठी तो इसने कचौड़ी को ग्रहण करने वाले बरतन का आकार ले लिया। पहाड़ देखने की इच्छा उठी तो इसने पहाड़ को ग्रहण करने वाले बरतन का आकार ले...
#पात्र को भरने की कोशिश करते है जो है ही नही,
जो रोज़ अपना आकार बदल रहा है क्या वो कभी भरा भी जा सकता है?
मन में कचौड़ी खाने की इच्छा उठी तो इसने कचौड़ी को ग्रहण करने वाले बरतन का आकार ले लिया। पहाड़ देखने की इच्छा उठी तो इसने पहाड़ को ग्रहण करने वाले बरतन का आकार ले...