ओ मगरुर उस नू भी कोई चाल समझ बैठा!
बस इश्क़ इश्क़ करती रही
ना जाने क्यूं इंतज़ार करती रही
इश्क़ बहरूपिया है और कुछ नही
दिल दे वास्ते ख़ुद नू ठगती रही,
जो सुलगकर ख़ाक हुआ
उसे विछोह इश्क़ में कहती रही,
दिल जलया पर राख़ पर भी हक़...
ना जाने क्यूं इंतज़ार करती रही
इश्क़ बहरूपिया है और कुछ नही
दिल दे वास्ते ख़ुद नू ठगती रही,
जो सुलगकर ख़ाक हुआ
उसे विछोह इश्क़ में कहती रही,
दिल जलया पर राख़ पर भी हक़...