...

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मै कुछ नहीं।
"राधा रमण"

मै भस्म हु।
विध्वंश हु।
अपनी बनायी चकरव्यू का मै ही अभिमन्यु हु।
इस घोर कालि रात मे, जोर की बेचैनी लिए, सन्नाटे की, आहट हु।
हु तो मै कुछ भी नहीं।
है समेटे हु मै, अपनी, दामनो की धुरिया।
कुछ क्यास है, है कुछ अपनी ही मजबूरिया।
कुछ कस्तियो का है दिया, कुछ कर्मो की...