...

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मजदूर
देश का मजदूर हूं ,

वक़्त और हालात से मजबूर हूं

दिहाड़ी से पेट भरता हूं

संघर्ष की रोटी खाता हूं ,

उम्मीदों की छत बनाता हूं

रिश्तों का बोझ ढोता हूं ,

शहर-शहर भटकता हूं

भूख-प्यास से बेहाल हूं ,

मदद की भाव रखता हूं

पाषाण बनें इंसानों से

व्यथा का आक्रोश...