मुस्कुराता हूं मैं...❤️❤️✍️✍️( गजल)
रिश्तों को शिद्दत से निभाता हूं मैं
इसलिए धोखे ज्यादा खाता हूं मैं
जितनी लुटाता हूं मोहब्बत यार
उतनी मोहब्बत कहां पाता हूं मैं
खुद ही मना लेता हूं खुद को
जब कभी खुद रूठ जाता हूं मैं
मुझसे दोस्ती रखो तो, अच्छा है
मोहब्बत से बहुत धबराता हूं मैं
मैं देखके खुद को शीशे में 'सत्या'
अकेले में बहुत मुस्कुराता हूं मैं
नहीं मिला पाता मैं उस से नजरें
पता नहीं क्यों इतना शर्माता हूं मैं
कितना नादां है दिल मेरा रो पड़े
रब अच्छा करेगा समझाता हूं मैं
© Shaayar Satya
इसलिए धोखे ज्यादा खाता हूं मैं
जितनी लुटाता हूं मोहब्बत यार
उतनी मोहब्बत कहां पाता हूं मैं
खुद ही मना लेता हूं खुद को
जब कभी खुद रूठ जाता हूं मैं
मुझसे दोस्ती रखो तो, अच्छा है
मोहब्बत से बहुत धबराता हूं मैं
मैं देखके खुद को शीशे में 'सत्या'
अकेले में बहुत मुस्कुराता हूं मैं
नहीं मिला पाता मैं उस से नजरें
पता नहीं क्यों इतना शर्माता हूं मैं
कितना नादां है दिल मेरा रो पड़े
रब अच्छा करेगा समझाता हूं मैं
© Shaayar Satya
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