...

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बदनाम
मे जज्बात ए जेहन लिखता हू
लोग इसे जाने क्या समझते हैं

मेरे अश'आर दौलत है मेरी
यह बात क़्यो नही तुम समज ते ।

वो सक़्स बदनाम है,
ओर ऊसि से तालूख क़्यो है यह तुम समज ते ।

जाने क़्या क़्या अंदाजा लगा लेते हो जनाब,
ओर भी बहुत काम है हर काम, को वासना क़्यो समज ते

भुल क़्यो जाते हैं इन्सान तो इन्सान है,
संग ए मरमर को तराश दू तुम मेरे हुनर को कम क़्यो समज ते ।

बगेर आतिश मे जले, कोई पतंगा परवाना नही बनता,
क़्या होता है नफ्ज टटोलना तुम ईस बात को नही समज ते।
© jitensoz