...

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आराधना

हजारों अनकहे जज़्बात लिए घूम रही हूं,
किस पर करूं उजागर इन्हें दिन रात सोच रही हूं।
जो था मेरा कल आज पराया सा लगता है,
मैं तो कब का दूर हो चुकी ,दिल में उसके कोई और ही बसता है।
साथ आज भी हूं उसके, शायद उसकी कोई मजबूरी हो।
दूसरी मोहब्बत से डरता है या साथ रहना उसका जरूरी हो।
पहली मोहब्ब्त न बन सकी मैं उसकी ,न ही आख़िरी,
मौत को भी गले लगा नहीं सकती ये मेरी कैसी मजबूरी?
भीड़ में हर पल खुद को अकेला पाती हूं,
अक्सर रोता है दिल, मैं फ़िर भी मुस्कुराती हूं।
प्यार करना भी चाहूँ उसे, तो कर न पाती हूँ।
मैं ना जाने क्यों अब उस से इतना घबराती हूं।
उमड़ते रहते कई ज़ज्बात दिल में
हर बार जिन्हें छुपाती हूं।
प्यार बिना अधूरा ये जीवन,
खुद को ही समझाती हूं।
न कोई अपना यहां न कोई पराया ।
ईश्वर ने किया इस तरह अकेला मुझे,
दूर हुआ मुझसे मेरा ही साया।
कैसे जीवन बिता लेते हैं लोग यादों के सहारे ,
मेरी तो नैय्या भी बीच समंदर में अटकी,
कैसे लाऊं उसे किनारे?
अरमान-ए-दिल मेरी चाहत की यही रही सदा,
हो जो कोई मेरा, बस हो मेरा अपना
तू तो सारे जग का "शिव",तुझ संग भी कैसे प्रीत लगाऊं?
हूँ नहीं मैं इतनी पावन जो तुझमें आ समाऊं।
इतनी सी आराधना शंभु मेरी है अब तेरे लिए,
ले लेना जन्म एक बार धरती पर तू बस मेरे लिए।🙏

GLORY❤️

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