...

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आ अब लौट चलें ।
की अपनी ही खुशियों की तलाश
मे हुम बहुत आगे चले आये,
हम ।
अपने सभी को भी पीछे छोड आये,
बाकी सारे रिश्ते तोड आये
हम।
बस एक दूसरे मे इस तरह खो गये,
की जमाने को पीछे छोड आये,
हम।
एक अलग दुनिया तो बसा ली है।
जाने कितनो के विश्वाश रौंद आये,
हम।
रात रात भर कई बार जागे इस डर से।
और जमाने से कितना भागें  ,
हम।
माना सब नाराज़ हैं हमसे पर,
सबके दिल मे दुबारा जगाह बना लगे,
हम।
अपने ही तो हैं सभी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
उनसे केसे सीक्वे गीले,,
"आ अब लौट चलें"