...

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बरसात
कब से मैं घूमसुम हुँ ,
ये तो मुझे भी नहीं थी खबर
अच्छा हुआ, समझ आया,
ये तो बरसात है दरबदर ।
मौसम के साथ कहाँ नाता हैं
वैसे भी बदल चुकी हैं मेरा ग़ज़ल।
ये तो ख्याल डूबी हैँ ज़मी के बूंदो मे
मैं ताकती रही खिड़की से आंगन पर।।

एक नज़ारे बरसात मे नाचते हुवे ,
कितना प्यार भरा एक हक़ीक़त पर,
न कल के फ़िक्र थी न आज कोई
जानती थी, कल बदल जाएगी ज़रूर।
इस बहार मे बेमतलब मैं हूँ ,
अपना भी ना जाने मुझे
कोई न पहचाने मुझको पर
तु पहचाने यही काफी हैं मेरा गुरूर ।।

अच्छा, बरसात के इस बूंदों से
क्या ही करूँ बात तेरा और ,
चाहे कितनी भी बुरा हो
वक़्त या मैं या फिर तूँ ,
पर मुहब्बत कभी बुरा नहीं होती
तभी तो हर नक़ाब के साथ
तेरा ही ज़िक्र हो रही थोड़ा और।।
© afi@ ✍️