...

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एक खयाल...
मेरी खानाबदोशी का, जाने क्या, सबब होगा
हांफती सी इस ज़िंदगी में, ठहराव कब होगा...

उम्र गुज़र रही है बस किराए के आशियाने में
मेरे सर पर, अपनी छत का साया, कब होगा...

मिला था हाथ देखने वाला वो फ़कीर शहर में
कहा बक्शीश दे तेरा सितारा बुलंद जब होगा...

आज उसने मुझे याद किया एक अर्से के बाद
ऐसे ही तो नहीं, उसका कोई तो मतलब होगा...

मैं ख़ुश हूँ कि मिला है, प्यार चुनिंदा लोगों का
बाकी मेरे पीठ पीछे कहते हैं, "बेअदब" होगा...

मैं कि ख़ामोशी से सुन लेता हूं, सबको ऐसे ही
अग़र जुबान खोल दी मैंने तो बड़ा ग़ज़ब होगा...

हँसते हैं जो हालात मुझ पर, कहकहों के साथ
पकड़ा जो हाथ रब ने उनका हाल अज़ब होगा...

तू हर्गिज़ मायूस ना हो, किसी चीज से "नवीन"
छोड़ दे उस पर, जब जो होना होगा, तब होगा..©

© Naveen Saraswat