"फ़र्क सोच का"
कोई दौलत का ढेर पाकर भी ख़ुश नहीं,
कोई रूखी सूखी खा कर भी सुखी है..!
कोई इंसानों के व्यवहार से बदलता विचार,
कोई भगवान् से भी दुखी है..!
फ़र्क सोच का है यही,
ज़िन्दगी किसने कब कहाँ और कैसे...
कोई रूखी सूखी खा कर भी सुखी है..!
कोई इंसानों के व्यवहार से बदलता विचार,
कोई भगवान् से भी दुखी है..!
फ़र्क सोच का है यही,
ज़िन्दगी किसने कब कहाँ और कैसे...