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मैं और वो चिडिया

मैं और वो चिडिया
बाग में देखा मैंने एक चिड़िया का जोड़ा,
सोचा खोलू इससे भेद मन का थोडा थोड़ा!

फूर से आई वो चिडिया मेरे पास,
शायद उसने पढ़ लिए मेरे मन के भाव!

फुदकी चहकी मेरे आस पास,
मैं बुदबुदाया उसने भी गीत सुनाया बिन्दास!

हम दोनों के बीच ये सिलसिला था कुछ खास,
देख इसे मुस्काया गुलाब जो था बेंच के पास!

मुझे उसका साथ बहुत भाया,
इसलिए रोज़ मैं उस बाग में आय!

अब तो तोता, मैना, पेड़ आदि को भी अपना दोस्त बनाया,
उनके साथ रह मेरा आक्सीजन लेवल भी उत्तम आया!

पर हाय एक दिन ऐसा भी आया,
जब मैंने बाग की जगह बिल्डिंग बनने का नोटिस पाया!

आज भी आती है वो चिडिया रोज सवेरे,
शायद पूछने मैं कुछ क्यों नहीं कर पाया!

रूचि प जैन