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जींदगी चाहो तो प्रेम न करो....
फूस की आग की तरह जवानी
सबकी गुजर जाती है
डींगे प्रेम की हांकने वाले
कितने सब्जबाग दिखाते है
पर वक्त के साथ उनके वादे और इरादे
महज संवाद रह जाते है
इंसान एक ही जींदगी मे
कितने रंग जीवन के देखता है
जिस व्यक्ति के अभिमान मे जिता है, वही
उसे रीता करके शर्मिंदा भी नही होती
बेवकूफ मेरी नजर मे है वो
पर समाज मे वो एक सफल इंसान है, और
मै उसके बातो, वादो और यादों को
सहेजे जीता हूँ
बरबाद हूँ मै
पर गिला नही
रस्ते खुद ही चुना है मैने
प्रेम की...