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इश्क़ के इंतज़ार में
इश्क़ के इंतज़ार में, एक रात यूंही कटी।
ज़िन्दगी आज़ाब में, हर शाम मेरी यूंही ढली।।

बादलों की आड़ में, दिखी मुझे चाँदनी छुपी।
में लड़खड़ाई उस राह में, साथ मेरे तू नहीं।।
कशिश में थी यूं फसी कि बन्द आँखों से लगी सपने सजा।
सपनों की दुनिया अज़ीज थी, पर हक़ीक़त थी सबसे जुदा।।

रात काली हो उठी,देख बादलों की साजिश कोई।
ख़्वाब अब कमज़ोर पड़ा, मुझे बिखरता-सा मेरा वजूद दिखा।।
टूटी मैं, टूटे मेरे ख़्वाब क्योंकि लड़खड़ाया था वजूद मेरा।
तिनके सी उम्मीद थी कहीं, तभी लड़खड़ाया न मेरा विश्वास।।

इश्क़ के इंतज़ार में, एक रात यूंही कटी।
ज़िन्दगी आज़ाब में हर शाम मेरी यूंही ढली।।

आँखें अब यूं खुली, कि नींद अब आती नहीं।
ज़िन्दगी के सफ़र में ख़्वाब की मुहर जो लगी।।
फलक से ज़मी पर, खाली हाथ लौटूंगी नहीं।
पहाड़ों की आड़ में, सूरज की किरण जो दिखी।।

लिख दिए अरमान सारे, वक्त के पन्नों में कहीं।
परिन्दे बन फिर उड़ चले, साकार हुए जो ख़्वाब कई।।
रोशन हुई फिर ज़िन्दगी, ख़्वाबों सी लगे ज़मीं।
मलाल बस इतना रहा, साथ अब भी तू नहीं।।

इश्क़ के इंतज़ार में, एक रात यूंही कटी।
ज़िन्दगी आज़ाब में, हर शाम मेरी यूंही ढली।।


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© Parul