मौसम की तरह वो मेरी रचना की क़िस्सा-कहानी है
वो खुद को मौसम की तरह बदलती है
अक्सर धूप - छांव की तरह मचलती है
मिज़ाज उसका ज़रा हवा के रुख़ जैसा
वो आज कल वक़्त की तरह सँभलती है
उसे कुछ इस तरह सवालों में आज यूं रखा
वो मेरी कलम में स्याही की तरह ढलती है
उस पर कई कहानियां लिखकर छोड़ दिया
वो ना जाने कितने मौसम की तरह चलती है
उसका लहज़ा क्या क्या मतलब बताता गया...
अक्सर धूप - छांव की तरह मचलती है
मिज़ाज उसका ज़रा हवा के रुख़ जैसा
वो आज कल वक़्त की तरह सँभलती है
उसे कुछ इस तरह सवालों में आज यूं रखा
वो मेरी कलम में स्याही की तरह ढलती है
उस पर कई कहानियां लिखकर छोड़ दिया
वो ना जाने कितने मौसम की तरह चलती है
उसका लहज़ा क्या क्या मतलब बताता गया...