...

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रकीब...
तुमसे क्या गिला मेरे रकिब
हम दोनो हम-खयाल है....

उन मे नजाक़त ही कुछ ऐसी है
मेरा महबुब बे-मिसाल है....

बिखेरता है वो जलवे हुस्न के
वो रंग-ए-इश्क गुलाल है....

जवाब क्यो नही किसी पैगाम का
बस यही तो सवाल है....

मिलते नही वो ख्वाबों मे भी अब
बस ये ही इक मलाल है...
© संदीप देशमुख