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मूर्ति पूजा क्यों ज़रूरी
मूर्ति पूजा क्यों जरूरी

भक्ति का एक मार्ग सरल तुम्हें
आज यहां समझाता हूं
मूर्ति पूजा क्यों होती जरूरी, ये भेद खोल बतलाता हूं।।

महत्वकांक्षी होता जीव जगत का
इच्छाओ से भरा जिसे पाता हूं
केंद्र ब्रह्मांड का खुद को मानता, परिधि जग बतलाता हूं।।

हल समस्या का खुद की चाहता
अनिच्छुक कर्म का कहता हूं
ईश्वर की पूजा स्वार्थ से करता, काम, भय-लोभ से ग्रसित पाता हूं।।

प्राण-प्रतिष्ठा के बाद मूरत में
ईश्वर का होना कहता हूं
ऊर्जा स्थापित हो जाती उसमें, जीवन की कल्पना करता हूं।।

मानना चाहिए केंद्र उस मूरत को
जीना उसके खातिर कहता हूं
हंसना-बोलना सब उसको समर्पित, खान-पीन के नियम बतलाता हूं।।

चलना-फिरना, उठना-बैठना
कथा ईश्वर की सुनना चाहता हूं
हर काम में उसकी आज्ञा जरूरी, गहन विश्वास का होना कहता हूं।।

सब जानते इस गूढ़ बात को
सच न मानने की भावना कहता हूं
अहम सच स्वीकार न करता, ये बात अनोखी बतलाता हूं।।

ईश्वर को माने जो केंद्र हमेशा
खुद को सेवक कहता हूं
ध्यान में रखता प्रभु हमेशा, उसे कर्मफल में लिप्त न पाता हूं।।

नव भक्ति की राह को पकड़े
अंतर्मन ईश्वर पाता हूं
भक्ति की वो पहली सीढ़ी है, जिसे मार्ग सरल बतलाता हूं।।

प्रभु की छटा रहती हृदय पटल पर
औझिल पत्थर की मूरत पाता हूं
फ़र्क न पड़ता फिर किसी मुरत का, तेरे ईश्वर को पास बतलाता हूं।।