...

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इंसान
सामने समंदर हे छलांग मत लगाना
असमान खुला हे छेद मत तलाशना
ये इंसान नहीं है जो हर वक्त अपना रुप बदलेगा
येतो संसार हे यहा ना भेदभाव हे नाही जलन

आदमी होते हे खुदगरज जो खुदके अभिमान मे संसार भुल जाते आँखो देखा सच्च टुकरा दे जाते हे
हर कीसीमे हीमत नहीं होती सच्चाई का सामना करणे की गलती से भी गलत हो जाये तो माफी मागने की कहते है ना इंसान खुदगरज हे खुदगरज रहेगा नाही वह बदलेगा ना दुसरे को बदलने देगा