द्रष्टा
खो गये से है शब्द, जानकर ये
आधे अधूरे,चून के बटोरे है
खो गये से है शब्द, मेरे
कैसे मिथ्या ,दृष्टि की देखी
जो बदलती है,सच नहीं होती
एक खोता है, दूजा रोता है
जिंदगी है क्या, ऐसा होता है
जो भी...
आधे अधूरे,चून के बटोरे है
खो गये से है शब्द, मेरे
कैसे मिथ्या ,दृष्टि की देखी
जो बदलती है,सच नहीं होती
एक खोता है, दूजा रोता है
जिंदगी है क्या, ऐसा होता है
जो भी...