...

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मेरे शहर के लोग !
ख़ुलकर जो इस समा ने, है ज़िक्र मेरा छेड़ा;
बातें बदल रहे हैं ,
मेरे शहर के लोग !

मशरूफ़ हैं वो इतने कि नजरें टिकीं हैं मुझपर ;
फ़ुर्सत में चल रहें हैं ,
मेरे शहर के लोग !

खिड़की से उठ...